28 सीटों के लिए मचे घमासान में दोनों ही प्रमुख राजनैतिक दल अपने अपने पक्ष माहौल बनाने के लिए जोरआजमाइश में लगे है। दिन व दिन नेताओं के दौरे बढ़ते जा रहे है जो जनता को रिझाने में लगे है। लेकिन इस सब के बीच पार्टी और नेताओं के समर्थक बहुत पीछे छूटते दिखाई दे रहे है। यही पीछे छूटने वाले वो कार्यकर्ता होते है जो अपने नेताओ के लिए जमीनी स्तर पर मेहनत करते है अगर यह नाराज हो गए तो पार्टियों को इसका खामियाजा उठाना पड़ सकता है। मामला अशोकनगर विधनसभा का है जहां सिंधिया समर्थक का मंच से नाम नहीं पुकारे जाने को लेकर उसने जमकर नारजगी जाहिर की इसका अंदाजा आप ऐसे लगा सकते है कि श्रीमंत सिंधिया ने कार्यकर्ता को समझाईश दी और जब वह नहीं माना तो 4 बार गले लगाना पड़ा। वही इसके एक दिन पहले भी कमलनाथ की सभा में भी कांग्रेस कार्यकर्ताओं की नाराजगी देखने को मिली थी।
अब सवाल यह है की पार्टिया बड़े नेताओ को साधने के चक्कर में कही जमीनी और जुझारू कार्यकर्ताओं का सम्मान तो नहीं खो रहे है। अगर ऐसा होता है तो उपचुनाव में पार्टियों को नुकसान होना तय है।
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