नवरात्रि के पावन पर्व पर प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के द्वारा माँ भवानी के स्वरूप के दर्शन का दरबार गौरझामर में किले के बाहर सजाया गया।इस झाँकी को लगाने का उद्देश्य है कि प्रत्येक मानव माँ के गुणों को अपने जीवन में धारण करें।माँ दुर्गा अर्थात हम सभी के अंदर से दुर्गुणों का नाश करने वाली।माता शेर पर सवार है इसका अर्थ है कि हिंसक शेर जैसी परिस्थितियों,परेशानियों पर माता ने विजय पाकर सवारी की इसी प्रकार हम भी अपने जीवन में भी विजय प्राप्त करे।
माँ लक्ष्मी जी को हम धन की देवी के रूप में पूजते है।परंतु यह कोई विनाशी धन की बात नही है बल्कि यह ज्ञान धन है जो निरंतर उनके हस्थों से निरंतर बहता रहता है।माँ का आसन कमल है जो दलदल में खिलता है पर न्यारा और प्यारा होता है ऐसे ही हम भी संसार मे रहते हुए जग से न्यारे और परमात्मा के प्यारे बने।
माँ सरस्वती जी ज्ञान की देवी वीणा वादिनी हमे परमात्मा का दिव्य ज्ञान देकर हमारे जीवन को गुणों के संगीत से भर रही है।माँ वैष्णो अर्थात विषय विकारों को मिटाने वाली आज हमारी आत्मा विषय विकारों में डूबी है।तीर कमान अर्थात ज्ञान के तीरों से हमारे बुराइयों को मिटाने वाली।
माँ गायत्री वेद माता यज्ञ माता जो निरंतर हमारे मन को शुभ विचारों से शुद्ध कर रही है।माँ का आसन हँस पर दिखाया गया है।हँस अर्थात जो दूध और पानी को अलग कर देता है।
इस झाँकी में बैठी हुई कुमारी कन्याएँ है जो राजयोग का अभ्यास करती है।और आंखों को स्थिर करके निरंतर परमात्मा की याद में बैठी हुई है।