सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कहा- टाटा का यह फैसला था जिंदगी की सबसे बड़ी गलती || STVN INDIA|SAGAR TV NEWS
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से रतन टाटा आज निश्चित ही चैन की सांस ले रहे होंगे। और, मैं साइरस मिस्त्री के गुणों, उनकी क्षमता, कुशाग्रता और नम्रता से प्रभावित हूं... 23 नवंबर 2011 को कहे अपने इन शब्दों के लिए उन्हें गहरा अफसोस भी जरूर होगा। यह वह तारीख थी जब लंबी तलाश के बाद रिटायरमेंट ले रहे टाटा को वारिस मिला था। इसके लिए साइरस टाटा संस में सबसे अधिक 18 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले शापूरजी पलोनजी के 43 साल के बेटे साइरस मिस्त्री को चुना था। लेकिन टाटा के लिए यह फैसला कैसे जिंदगी का सबसे बड़ा दुस्वप्न बना, यह सुप्रीम कोर्ट की एक टिप्पणी भी बताती है, जिसने इसे टाटा की जिंदगी की सबसे बड़ी गलती करार दिया। मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबड़े और जस्टिस ए एस बोपन्ना, जस्टिस राम सुब्रमण्यम ने की बैंच ने अपने 282 पेज के फैसले में हैरानी जताई कि किस तरह से नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल ने नियमों की अनदेखी करते हुए टाटा संस के चेयरमैनशिप के लिए मुहर लगा दी थी, जबकि उनका कार्यकाल समाप्त हो चुका था। अदालत ने कहा कि वास्तव में आज यह माना जा सकता है कि 16 मार्च 2012 को जब साइरस मिस्त्री को टाटा संस का एग्जीक्यूटिव चेयरमैन बनाया गया वो सबसे गलत फैसला था। अदालत ने कहा कि यह अपने आप में विरोधभास है कि उस शख्स ने आरोप लगाया जो सिर्फ 18.37 फीसद की भागीदारी के बाद टाटा संस का चेयरमैन बनता है वो उसी बोर्ड के बारे में परेशान करने वाली नीतियों का जिक्र करता है जिस बोर्ड ने उसे बड़ी जिम्मेदारी दी।अदालत ने कहा कि दुर्भाग्य से साइरस मिस्त्री ने उसी घर को आग लगा दी जिसे संभालने और सहेजने की जिम्मेदारी दी गई थी। लिहाजा किसी भी शख्स को जब इस तरह की पृष्ठभूमि में हटाया जाता है तो उसे दुर्भावनापूर्ण या परेशान करने वाला नहीं कहा जा सकता है। मिस्त्री ने जब जिम्मेदारी संभाली तो खुद यह कहा था कि वो रतन टाटा के गाइडेंस पर कामकाज को आगे बढ़ाएंगे। जब चेयरमैन बनने के बाद साइरस मिस्त्री ने खुद रतन टाटा को चेयरमैन एमिरट्स नामित किया उस केस में एसपी ग्रुप यह नहीं कह सकता कि वो शैडो डॉयरेक्टर थे।