मध्यप्रदेश के दमोह जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर स्थित तेजगढ़ थाने में एक ऐसी मजार मौजूद है.जहां का थानेदार पहले मजार पर सजदा करता है उसके बाद ही अपनी कुर्सी पर बैठता है.मान्यता है कि अगर किसी ने हजरत बाबा मुरादशाह की मजार पर अपनी हाजिरी नहीं लगाई तो उसको हर हाल में अपनी कुर्सी से हटना पड़ जाता है.इतना ही नहींइस थाने में बाबा साहब के आर्शीवाद से यहां झूठी गवाही और शिकायतें दर्ज नहीं की जाती.साथ ही थाने में आने से पहले जूते चप्पल बाहर उतार कर ही आना होता है. थानेदार कक्ष के बाहर बाकायदा पर्चा चस्पा है जिसमें साफ अक्षरों में लिखा है कि कृपया जूते चप्पल बाहर उतारें.6 पीढ़ियों से मजार की देखरेख कर रहे सलीम मुल्लाजी ने बताया कि इस मजार का इतिहास बहुत पुराना है.बहुत समय पहले तेजगढ़ में राजा तेजी सिंह हुआ करते थे.जिनकी कचहरी यहीं थी.जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने यहां थाना बना दिया था
बाबा साहब ने कई जादुई करिश्में बहुत मशहूर हैं.सलीम मुल्लाजी ने बताया कि एकवाकया 1973 में हुआ था.जब गांव से दूर नया थाना बनाने के लिए जमीन चयनित हुई थी.मजार हटाने के लिए काम भी शुरू हुआ दीवारें भी खड़ी की गईं.लेकिन रात में ऐसा करिश्मा हुआ कि उनमें दरार आ गई और वह धरासाई हो गई.वहीं बाबा साहब की मजार के देख रेख करने वाले को बाबा ने सपने में बताया किवह थाने में ही रहना चाहते है.जिसके बाद से बाबा साब थाना परिसर में ही मौजूद हैं.तब से लेकर आज तक जो भी नया थानेदार आता है.वह कुर्सी पर तशरीफ़ रखने से पहले बाबा साहब की मजार पर अपनी हाजरी देकर चादर चढ़ाता है.तभी वह अपनी कुर्सी पर टिक पाता है.तेजगढ़ थाना प्रभारी धर्मेन्द्र उपाध्याय ने बताया कि थाना कक्ष से लगी हुई हजरत बाबा मुरादशाहकी मजार है.जिसकी पूरे क्षेत्र और पुलिस विभाग में मान्यता है.कोई भी ग्रामीण थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने से पहले मजार के दर्शन करता है.उसके बाद ही रिपोर्ट लिखवाता है.थाना प्रभारी कक्ष में जूते चप्पल पहनकर कोई भी प्रवेश नहीं करता.हर शुक्रवार के दिन मजार पर चादर चढ़ाई जाती है.कोई भी नया थाना प्रभारी आता है वह पहले बाबा की मजार पर चादर चढ़ाकर ही प्रवेश करता है.
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