सागर-400 साल पुरानी कुत्ते की समाधि की क्या हैं किवदंती ? देखिए
लोग बताते हैं कि सदियों पहले इन दोनों गांवों में अलग-अलग भोज हुआ था। लेकिन रोन की भोज पंगत में लेटलतीफी देख कुत्ता और उसके साथ कुतिया ने कुमरई गांव में हो रही भोज पंगत में दावत करने की सोची। जब वह दोनों वहां पहुंचे तो यहां भी खाना शुरू होने में कुछ वक्त था। तब इन दोनों ने वापस रोन गांव का रुख किया लेकिन यहां पंगत खत्म हो चुकी थी और झूठी पत्तलों को दूसरे कुतों ने चाट-चाट भोजन खत्म कर दिया था। हताश हुए यह दोनों कुत्ता कुतिया वापस कुमरई आए लेकिन उन्हें यहां भी वही देखने को मिला.यहां भी पंगत की झूठी पत्तल खत्म हो चुकी थी। बताया जाता है कि जब दो गांवों के बीच भागदौड़ करने के बाद भी उनको भोजन नहीं मिला तो दोनों का दम निकल गया और वे पत्थर के बन गये। यहां एक शिलालेख भी लगा था। जिस पर 400 साल पुरानी यह इनकी कहानी संस्कृत में लिखी थी। इसी शिलालेख के स्थान पर इन कुत्ता कुतियों की समाधि हैं। जिस पर कोई जूते पहन कर नहीं चढ़ता है। तब से लेकर अब तक इस अंचल में यही कहावत कही जाती है रोन-कुमरई के कुत्ते-कुतिया। यहां इस कहावत के मायने सब्र और धैर्य को लेकर हैं, लालच को लेकर नहीं।