होली पर माता ने महामारी से मुक्ति दिलाई थी इसलिए बन गई ये अनोखी परंपरा
रायसेन जिले से 20 किमी दूर सागर रोड स्थित खंडेरा गांव में होली को लेकर एक अलग ही परंपरा है। होली वाली दूज के दिन इस गांव में किसी भी धारदार औजार का उपयोग नहीं किया जाता। यहां तक कि न तो घरों में सब्जी काटी जाती है और न ही किसान फसल काटते हैं। ये काम धुलेंडी की रात 12 बजे से बंद हो जाता हैं जो होली की दूज के दिन रात नौ बजे के बाद ही चालू होता हैं। 500 सालों से यह परंपरा चली आ रही है। इस अनोखी परंपरा के बारे में बताया जाता है कि एक बार गांव में महामारी फैली थी। जिसे रोकने के लिए एक संत के कहने पर ग्रामीणों ने 7 दिन यज्ञ किया। पूर्णाहुति के दिन जमीन से 5 प्रतिमाएं निकलीं, उनका नाम रखा गया छोले वाली माता। जिनका पूजन पाठ किया गया और मां की कृपा से महामारी भी खत्म हो गई थी। ग्रामीणों का कहना है कि होली की दूज पर पूजा के लिए हर घर से दो किलो गेहूं चंदे में लिया जाता है। दूज पर लोग पूजा करते हैं और बकरी के बच्चे के बलि देकर उसका खून एक खप्पर में भरकर चबूतरे पर रख दिया जाता है और धड़ मंदिर में ही रखकर छोड़ दिया जाता है। रात भर मंदिर के पट खुले रखे जाते हैं। रात में एक शेर बकरी के बच्चे का धड़ खाने आता है। हालांकि, ग्रामीणों ने इस मंदिर के हजारों चमत्कार देखे है और इस मंदिर में माता पर विश्व की सबसे बड़ी लम्बी 18 किलोमीटर चुनरी चढ़ाई जा चुकी हैं। ग्रामीण बताते है। ग्राम पंचायत के आधा दर्जन ग्रामीणों में धार बाले औजार बंद रहते है। कहा जाता है कि इस मंदिर में मां से जो भी मांगो उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है। यहां मां के दर्षन करने दूर-दूर से भक्त आते हैं। रायसेन से राजेश रजक की