दीपावली के अवसर पर बुंदेलखंड में दिवारी गायन की परंपरा है। इसके साथ ही दीपावली के दूसरे दिन से लेकर भाई दूज तक जगह-जगह मौनिया निकलते हैं। मौनिया वह लोग होते हैं जो 1 दिन विशेष के लिए मौन धारण करते हैं। यह लोग 12 गांव की यात्रा एक ही दिन में करते हैं। गांव-गांव में प्रमुख मंदिरों और लोगों के घर-घर जाकर गोवर्धन भगवान की परिक्रमा और पूजन करते हैं। इनके साथ सोबत भी होती है, जो दिवारी गायन करती है। बुंदेलखंड अंचल की परंपरा गांव में आज भी हूबहू चल रही है। अच्छी बात यह है कि नई पीढ़ी भी इसमें अब पूरी तरह से घुलमिल गई है। सागर जिले के बोबई के बगौदा गांव के मौनिया और सोबत आई और उन्होंने गोवर्धन पूजन व गायन किया।
ढोल नगाड़ों की थाप पर सोबत दीवारी गाते हुए तो मौनिया नृत्य करते हुए उछलते-घूमते हुए अपने गंतव्य को जाते हैं। इस दिन मौनिया श्वेत धोती ही पहनते हैं और मोर पंख के साथ-साथ बांसुरी भी लिए रहते हैं। मौनियों का एक गुरु होता है जो इन्हें अनुशासन में रखता है। मौनिया व्रत की शुरुआत सुबह गौ (बछिया) पूजन से होती है। इसके बाद वे गौ-माता व श्रीकृष्ण भगवान का जयकारा लगाकर मौन धारण कर लेते हैं फिर गोधूलि बेला में गायों को चराते हुए वापस नगर-गांव पहुंचते हैं। मौनिया लाई-दाना का प्रसाद सभी श्रद्धालुओं को वितरित करते हैं।
वहीं रात में गांवों में दिवारी गायन भी शुरू हो गया है। जो कि पूरे कार्तिक माह तक चलेगा। इस दौरान लोग अधिकांशतः कृष्ण भक्ति के भजन और गीत गाते हैं।
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