Sagar- जमीन खुदाई कर तलाशते थे सिक्के, अब विश्व भर में मिली पहचान जानिए कौन है डॉ. मोहनलाल
पाषाण काल से आधुनिक काल तक के इतिहास को अपने में समेटे ऐतिहासिक धरोहर एरण पर शोध चल रही है. जिसे लेकर सागर यूनिवर्सिटी के छात्र और वर्तमान में इंदिरा गांधी जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति व पुरातत्व प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष डाॅ मोहनलाल चढ़ार को बड़ी उपलब्धि हासिल हुई है. पुरातत्व के क्षेत्र में रिसर्च को लेकर जारी हुई
वर्ल्ड साइंटिफिक इंडेक्स में उन्हें भारत में पहला स्थान हासिल हुआ है. खास बात ये है कि डाॅ मोहनलाल चढ़ार खुद एरण के मूल निवासी हैं और बारहवीं के बाद से लगातार एरण की पुरातात्विक धरोहर पर शोध करके एरण को विश्व पटल पर चर्चित करने में उनका अहम योगदान रहा है. उनके अब तक 105 रिसर्च पेपर और 14 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. हाल ही में 2024 में प्रकाशित रिसर्च पेपर एरण: द रिच कल्चरल हेरिटेज एंड लास्ट सिविलाइजेशन के कारण वो चर्चा में आए और इसी वजह से अंतर्राष्ट्रीय स्तर की उपलब्धि हासिल हुई है.
प्रो. डाॅ मोहनलाल चढ़ार बताते हैं कि एरण एक ऐसा पुरास्थल है, जो पाषाणकाल से हड़प्पा काल की समकालीन ग्रामीण संस्कृतियां चली आ रही है. जिसे ताम्रपाषाण कालीन संस्कृति कहा जाता है, तब से स्थित है. उसके बाद महाजनपदकाल है, जिसमें भारत में बडे़-बडे़ नगरों का उदय हुआ. उसमें चेदी महाजनपद के अंतर्गत एरण आता था. एरण और अवंति महाजनपद उस समय मध्य भारत के दो बडे़ महाजनपद थे
डाॅ मोहनलाल चढ़ार बताते हैं कि यहां मौर्यकाल से लेकर शुंगकाल, कुषाणकाल, नाग शासकों के सिक्के मिले है. भारत के प्राचीनतम और शुरुआती सिक्के यहां मिले हैं. उसके अलावा एरण में टकसाल थी, कई राजवंशों के समय टकसाल रही है. यहां पर समुद्रगुप्त आया था और एरण को अपनी स्वभोग नगरी बनाया. कोलकाता संग्रहालय में रखे एरण अभिलेख में लिखा है कि एरण में समुद्रगुप्त आया, उसने इसे स्वभोगनगरी के रूप में स्थापित किया. यहां पर उसने विशाल विष्णु मंदिर स्थापित किया था.