फूड सेफ्टी की छापेमार कार्रवाई, मिठाइयों में गंदगी, मिलावट माफिया पर शिकंजा या सिर्फ दिखावा ?
दीपावली नज़दीक है और इसी त्योहारी रौनक के बीच भिंड में मिलावटखोरी का खेल एक बार फिर बेनक़ाब हुआ है। फूड सेफ्टी विभाग की टीम ने शनिवार को बड़ी कार्रवाई करते हुए शहर की नामी मिठाई दुकानों पर दबिश दी। कार्रवाई इंदिरा गांधी चौराहा और कलेक्ट्रेट के सामने स्थित दुकानों में की गई, जहां गंदगी के बीच मिठाइयाँ तैयार होती मिलीं। राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई चलित फूड टेस्टिंग मोबाइल लैब भी मौके पर मौजूद रही। दुकानदारों में हड़कंप मचा हुआ है। कई जगह दूध, मावा, घी और मिठाइयों के नमूने लिए गए। मौके पर साफ दिखाई दिया कि कई दुकानों पर ना स्वच्छता का पालन हो रहा है, ना ही खाद्य सुरक्षा मानकों का। हाथ से बिना दस्ताने मिठाइयाँ बनाई जा रहीं थीं, फर्श गंदा था और भंडारण का सिस्टम शून्य।
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या इस बार कार्रवाई का असर होगा? क्योंकि पिछले दो साल के रिकॉर्ड इसकी पोल खोलते हैं। विभाग ने अब तक 114 सैंपल लिए, पर आधी से ज़्यादा रिपोर्ट आज तक भोपाल से वापस ही नहीं आईं। अफसरों से जवाब मांगो तो भोपाल का हवाला देकर जिम्मेदारी टाल दी जाती है। कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव ने स्पष्ट निर्देश दिए थे कि मिलावटखोरों पर सख्त कार्रवाई की जाए और त्योहार से पहले सभी दुकानों की जांच हो। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि पिछले वर्षों में अधिकांश रिपोर्टें “निगेटिव” बताकर फाइलें दफ्तरों में दबा दी गईं। कई नमूनों की रिपोर्ट तो एक साल बाद भी नहीं आई।
ऐसे में सवाल उठता है—क्या ये छापेमारी सिर्फ त्योहारों के वक्त की औपचारिकता है? क्या मिलावट माफिया पर कभी कार्रवाई होगी या उन्हें बचाया जाएगा ? क्या त्योहारों में लोगों के स्वास्थ्य के साथ यूं ही खिलवाड़ होता रहेगा? दुकानों पर कार्रवाई के दौरान कई ग्राहकों ने भी सवाल उठाए कि अगर रिपोर्टें ही समय पर नहीं आएंगी तो ये सैंपलिंग किस काम की? भिंड में अब निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या इस बार कार्रवाई सिर्फ दिखावे से आगे बढ़कर असली नतीजे भी दे पाएगी, या फिर मिलावटखोरी का धंधा यूं ही रंगीन पैकिंग में चलता रहेगा।