तीन स्वरूपों में दर्शन देने वाली महाकाली की महिमा 

 
 
Bhan Singh Yadav
 
 

मालथौन-सागर जिले से 60 किलोमीटर की दूरी पर मालथौन जनपद मुख्यालय स्थित नगर के बीचो-बीच किला प्रांगण में शक्तिपीठ में विराजमान माता महाकाली का अद्भुत स्वरूप के दर्शनों के लिये भक्तों का तांता लगा हुआ हैं। नवरात्रि के महापर्व पर भक्त सुबह पांच बजे से कतार में मां जगत जननी के चरणों जल अर्पित करने पहुच रहे है।

इतना ही नहीं  मां काली के दरबार में  प्रभात फेरी  का भी आयोजन किया जाता है  मां के दरबार से होकर नगर भ्रमण कर माता के दरबार में  समापन किया जाता है। यहां की प्रमुख विशेषता है किवदंती (मूर्ति) एक तो कलकत्ता में विराजमान है दूसरी मालथौन के किला प्रांगण में मातारानी का अद्भुत स्वरूप विराजमान हैं। यहा का इतिहास बहुत प्राचीन हैं।

किला परिसर में बने चोपड़ा कुंड में बीजक लगे हुए है वह पाल वंश के राजाओं का इतिहास प्रदर्शित करता है। शक्तिपीठ के बारे में यह किवदंती आम है कलकत्ता और मालथौन की काली मां की प्रतिमा एक हो पत्थर से निर्मित हैं इतिहास में साफ लिखा है बंगाल के पाल वंश द्वारा दुर्लभ काले पत्थर की निर्मित मूर्तियां इस वंश की विशेषता रही है। कहते है कि जब सम्राट हर्ष की 647 इश्वी में मृत्यु हुई तो कन्नौज पर शासन करने के लिये गुर्जर प्रविहार , राष्ट्रकूट तथा पाल वंश के बीच 1200 ई तक संघर्ष चले।

कन्नौज सहित उत्तर भारत मे पाल शासन लंबे समय तक चला। बंगाल से इस प्रतिमा को इसी दौरान 800 इश्वी के करीब लाया गया। मूर्ति में प्रयुक्त पत्थर काले हीरे की तरह हैं जिसका किसी मौसम में लाखों वर्ष क्षरण नहीं होता हैं। ऐतहासिक रूप से देखे तो खजुराहो मंदिरों से प्राचीन और दुर्लभ हैं।बताया जाता है कि करीब 800 ईश्वी शताब्दी में बंगाल के राजा महाराजाओं ने किवदंती को स्थापना करवाई गई थी। एक और इतिहास के अल्हा ऊदल के खंड काल मे पथरीगण का उल्लेख हैं उसे पथरीगण की माता रानी भी कहा गया हैं।

आदि शक्ति महाकाली का अदृत्तीय स्वरूप विराजमान है, मां के दरबार मे वर्ष में दो बार भक्तों का रैला लगता है नवरात्रि पर्व पर यहाँ दूर दूर से भक्त मा जगतजननी के दरबार में पूजा अर्चना करने पहुंचते है भक्तगण प्रातः काल की बेला में माँ जगत जननी के दर्शनों से दिन का शुभारंभ कर रहे है यहा की मान्यता है की यहा पर भक्तों द्वारा सच्चे दिल से मांगी गई हर मनोकामना पूर्ण होती है।यहाँ माता रानी के दर्शन मात्र से लोग मन्त्र मुग्ध हो जाते है,तथा शांति का अनुभव करते है।

अष्टमी और नवमी पर्व पर यहा बर्ष में भक्त दूर दूर से दो बार माता रानी के दर्शनों को अवश्य पधारते हैं। वैसे यहा भक्तों का वर्ष भर आना जाना लगा रहता हैं।महाआरती उमड़ रहे भक्त:  चैत्र नवरात्रि में महाकाली के दरबार मे संध्या कालीन महाआरती में बड़ी संख्या में भक्त जन सम्मिलित होकर धर्मार्जन कर रहे हैं।महाआरती का दृश्य अदृत्तीय लगता है बड़ी संख्या में भक्तजन शामिल होते है। मंदिर परिसर का  बातावरण शांत अनुकूल बना रहता हैं। यहा माता रानी की महिमा निराली हैं।

चैत्र एवं कुंवार मास की नवरात्र में अखंड रामायण का पाठ माता रानी के दरबार में प्रांगण में बने हुए सत्संग भवन में किया जाता है भक्त माता की भक्ति में लीन होकर आराधना मग्न है। मालथौन के प्राचीन किला का सौन्दर्यकरण पुरातत्व विभाग द्वारा कार्य किया जा रहा है माता रानी की महिमा है जिससे सबरने लगा हैं।

जिस स्थान पर माता की मूर्ति विराजमान है वहां पर सिद्धि के कारण 12 महीने जलस्तर ऊपर ही रहता है कहीं भी आप खोद लें चार या पांच फीट पर पानी आसानी से निकल आता है जबकि जैसे ही आप किला प्रांगण से बाहर जाते हैं आपको सोच से 200 फीट पर ही पानी मिलता है इसे माता की सिद्धि ही कहा जाएगा।नगरवासियों को माता का बरदान : 

यह कहा जा सकता है कि मालथोन वासियों और क्षेत्रवासियों के लिए माता महाकाली का ऐसा आशीर्वाद रहता है कि यहां पर कभी भी प्राकृतिक आपदा नहीं आती है और लोग सदैव सुरक्षित महसूस करते हैं।

ग्रामीणों का कहना है कि आप कितने भी दूर हो माता का स्मरण कर लें और अपनी मनोकामना जाहिर करें आपकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। बचपन से ही मां की सेवा करने वाले श्री तुलसी राम पटवा का कहना है कि माता रानी की महिमा अपार है एवं माता रानी दिन में तीन रूप बदलती है।माता रानी का दरबार नवरात्र में बल्कि 12 महीने भीड़ से भरा रहता है यहां पर प्रतिदिन कई लोग नियमित रूप से प्रातः काल पूजन करने और सायं काल दर्शन और आरती करने आते हैं छोटे बच्चों में और महिलाओं में विशेष रूप से श्रद्धा देखने को मिलती है।

माता रानी के दरबार में प्रतिदिन सायं को आरती होती है इसमें सैकड़ों भक्त शामिल रहते हैं। 


By - Bhan Singh Yadav
16-Apr-2019

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