राज्यसभा सांसद और केंद्रीय मंत्री की इस लोकसभा सीट पर क्यों है इतनी दिलचस्पी?
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया इस बार चुनाव लड़कर लोकसभा सांसद बनने की तैयारी में हैं। गुना-शिवपुरी लोकसभा सीट पर उनकी नजर है। शिवपुरी पहुंचे सिंधिया ने इस ओर इशारा भी कर दिया है। सिंधिया यहां खेल महोत्सव में भागीदारी करने आए थे। उन्होंने खिलाड़ियों के पारंपरिक खेल देखे, उन्हें प्रतीक चिन्ह के रूप में राम मंदिर, पुरस्कार और प्रमाण पत्र भी दिए। सिंधिया से पूछा गया कि क्या इस बार लोकसभा में भाजपा 400 सीटें जीतेगी? उनका उत्तर था, मैने कभी संख्या नहीं बताई,लेकिन देश की एक करोड़ 40 लाख जनता चाहती है कि अबकी बार नहीं, तीसरी बार मोदी जी की सरकार बने। लगे हाथ पत्रकारों ने यहां से चुनाव लड़ने की मंशा पर सवाल पूछ लिया। इस पर उनका कहना है कि पार्टी के निर्णय को सर माथे रखकर पूर्ण रूप से
पालन करूंगा। आपको बता दें फिलहाल इस सीट से भाजपा के ही केपी यादव सांसद हैं। 2019 में इसी सीट पर सिंधिया को यादव से करारी हार का सामना करना पड़ा था। यह बात अलग है कि तब यादव भाजपा से मैदान में थे और सिंधिया कांग्रेस के उम्मीदवार थे। इस बार स्थिति अलग है दोनों ही नेता एक ही पार्टी में है। फिर भी सिंधिया का कद राजनीति में यादव से कहीं अधिक है। ऐसे में विनर कैंडीडेट होने के बाद यादव को इतने बड़े नेता को हराने का श्रेय नहीं मिल पाता है। सिंधिया कांग्रेस छोड़ भाजपा में आ गए। इसके बाद वे राज्यसभा सांसद बने और केंद्रीय मंत्री हैं। पार्टी में उनका कद इसलिए भी बड़ा है कि पिछली बार कांग्रेस की सरकार गिराकर भाजपा को सरकार बनाने का मौका देने वाले सिंधिया ही थे। इसी कारण उनके समर्थकों को टिकट और मंत्री पदों से नवाजना पार्टी की मजबूरी रही। यही कारण रहा कि चुनाव जीतने के बाद केपी यादव सांसद ही रह गए और सिंधिया हारकर भी
केंद्रीय मंत्री बन बए। गुना—शिवपुरी सीट सिंधिया परिवार की परंपरागत सीट मानी जाती है। 2019 के पहले सिंधिया यहां से सांसद रहे हैं। वर्तमान सांसद यादव कभी उनके सांसद प्रतिनिधि हुआ करते थे। लेकिन राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं होता। ऐसे में यादव कांग्रेस और सिंधिया को छोड़ भाजपा में पहुंचे और उनके ही खिलाफ ताल ठोक दी। सिंधिया अजेय नेता कहलाते थे लेकिन यादव के सामने उन्हें करारी शिकस्त झेलनी पड़ी थी। जीतने के बाद दोनों नेताओं के संबंध ज्यादा अच्छे नहीं हैं। शायद पिछली बार यहां से चुनाव हारने की कसक सिंधिया के मन में है ऐसे में वे फिर से मैदान में उतर सकते हैं। यह कहना भी अतिश्योक्ति नहीं होगी कि सिंधिया यहां से टिकट भी ले सकते हैं। क्योंकि जब वे अपने साथ कांग्रेस से आए विधायकों को कैबिनेट में मंत्री बनवा सकते हैं तो टिकट लेना कोई बड़ी बात नहीं होगी। उनकी जीत पर भी संशय नहीं हो सकता। उनके समर्थक भी यही मांग कर रहे हैं। खैर अभी लोकसभा चुनाव थोड़े दूर हैं इसलिए कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी क्योंकि राजनीति में समीकरण बदलते देर नहीं लगती। ऐसे में इस बार यहां का रोचक मुकाबला देखने के लिए इंतजार ही अंतिम विकल्प होना चाहिए।