सागर-मंत्र, साधना, तप का प्रमाण है ओम शब्द-पंडित प्रदीप मिश्रा
तुलसी दल, जल, बेलपत्र तीनों चीजें हमारे व्रत, पूजन और साधना का प्रमाण है,और हमारे मंत्र, हमारी साधना, तप का प्रमाण है। सृष्टि, पालन, संहार, तिरोभाव, अनुग्रह यह पांचों कार्य महादेव के हैं ।प्रथम चार कृत्य संसार का विस्तार करने वाले हैं। पांचवा कर्म अनुग्रह मोक्ष के लिए है। ॐ की उत्पत्ति भगवान शिव के मुख से ही हुई है ।जो भी इस ओम का जाप प्रतिदिन करता है वह शिव कृपा का भागी होता है। उक्त अमृतमयी वचन अंतर्राष्ट्रीय संत पंडित प्रदीप मिश्रा (सीहोर वाले) ने वृंदावन धाम परिसर पटकुई बरारू में ओम श्री शिव महापुराण की कथा का श्रद्धालुओं को श्रवण कराते हुए व्यक्त किए। प्रदीप मिश्रा ने कहा कि जब तक भगवान शंकर की कृपा नहीं होती तब तक मनुष्य एक कदम भी भगवान की ओर नहीं बढ़ा सकता। शंकर का एक नाम भस्मैया भी है। जिसका मतलब शिव भस्म मय हो जाना या रम जाना। शिव पुराण कथा कहती है जब मनुष्य मां की कोख मे होता है तो रक्त, जल में सना हुआ होता है, और जब जन्म लेता है तो संसार के जितने सुख-दुख, धर्म कर्म है उनमें रमा हुआ होता है। अंतिम समय आता है तो वह भगवान का भजन करता है और प्राण छूटने पर भस्म में बदल जाता है । मनुष्य के अंतिम क्षण का समय बड़ा मूल होता है। अंतिम क्षण भक्ति में लगाओ तो शिवत्व अवश्य प्राप्त करोगे