सागर- देवलचौरी में चल रही रामलीला में भगवान श्री राम का राज्याभिषेक,उमड़ पड़ा सैलाब
सागर जिले के देवलचौरी गांव में पिछले 118 साल से चलीं आ रही रामलीला का समापन किया गया। समापन के दौरान भगवान श्री राम के राज्याभिषेक, बाली का वध, लंका दहन, कुंभकरण, मेघनाथ और रावण का वध, रामेश्वर की स्थापना का मंचन किया गया, जिसे देखकर दर्षक मंत्रमुग्ध हो गए। खास बात यह है कि देवलचौरी में ब्रिटिश शासनकाल में रामलीला का मंचन शुरू हुआ था, तब से लेकर अब तक लोग पीढ़ी दर पीढ़ी रामलीला में किरदार निभाते चले आ रहे हैं। वीओ बताया जाता है कि वर्ष 1905 में जब अंग्रेजों का शासन था। तब सागर में भी अंग्रेजों की इजाजत के बगैर कोई काम नहीं होता था। लेकिन सागर से करीब 25 किमी दूर ग्राम देवलचौरी के मालगुजार छोटेलाल तिवारी ने वर्ष 1905 में गांव में रामलीला मंचन करने का निर्णय लिया। इसके बाद गांव के लोगों ने मंचन के लिए अलग-अलग किरदारों की रिहर्सल की। बसंत पंचमी के दिन से रामलीला का मंचन शुरू किया, तभी से बसंत पंचमी पर रामलीला के मंचन की परंपरा देवलचौरी में शुरू हुई, रामलीला की खासियत यह है कि यहां न तो कोई रामलीला मंडली है और न ही बाहर से कोई कलाकार आता है। गांव के ही बच्चों से लेकर बुजुर्ग रामलीला में किरदार निभाते हैं। इस साल भी बसंत पंचमी से गांव में रामलीला का मंचन चल रहा है। षनिवार को बाली वध, लंका दहन, रावण वध आदि का मंचन कर समापन किया गया। जिसे देखने के लिए सागर शहर समेत आसपास के गांवों के हजारों लोग देवलचौरी पहुंचे। वही, परिवार के ही मनोहर तिवारी बताते हैं कि पहले ब्रिटिश शासनकाल में गांव के कच्चे चबूतरे पर रामलीला का मंचन होता था। लेकिन लोगों में आस्था ऐसी थी कि लोग बैंच को लकड़ियों में बांधकर पालकी बनाते थे। भगवान की झांकी निकालते थे। भगवान राम, सीता और लक्ष्मण असली सोने-चांदी के गहने पहनते थे। घर-घर उनकी आरती होती थी। अंग्रेजों का शासन था, लेकिन उस दौर में भी गांव में रामलीला का मंचन बगैर खौफ या व्यवधान के होता था। अंग्रेजों ने कभी भी रामलीला के मंचन में बांधा नहीं पहुंचाई और न ही मंचन करने से गांव वालों को रोका। ब्रिटिश हुकूमत में करीब 42 सालों तक लगातार रामलीला हुई। 1947 में पहली बार आजाद भारत में रामलीला का मंचन उत्साह और धूमधाम से किया गया था।