विधिक साक्षरता शिविर में धर्म, अध्यात्म और कानून की शिक्षा का संगम, न्यायाधीश ने क्या कहा ?
न्यायाधीश ने सिखाई जीने की कला बचपन बचाने फैलाई जागरूकता
विधिक साक्षरता शिविर में धर्म, अध्यात्म और कानून की शिक्षा का संगम, न्यायाधीश ने क्या कहा ?
राजगढ़ में कानून के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए एक दिवसीय विधिक साक्षरता शिविर का आयोजन किया गया। इसमें न्यायाधीश कपिल देव ने धर्म, आध्यात्म और कानून की जानकारियां दीं। उन्होंने कहा कि वर्तमान में सहजता के साथ जीना ही वास्तविक जीवन है। वर्तमान समय में व्यक्ति अतीत और भविष्य की चिंता में व्यर्थ ही परेशान है। जबकि अतीत बीत चुका है और भविष्य उसने देखा नहीं है। अतीत उसकी स्मृति है और भविष्य उसकी कल्पना है। व्यक्ति का वास्तविक और जीवंत क्षण उसका वर्तमान ही है। हम जो भी कर रहे हैं उसमें आध्यात्मिक विचारों का समावेश परम आवश्यक है। विधिक जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि सभी व्यक्तियों को कानून की सामान्य जानकारी होना जरूरी है। आधुनिक समाज में कई प्रकार के अपराध हो रहे हैं और हम कानूनी जानकारी के अभाव में उन अपराधों का शिकार हो जाते हैं। बच्चों को शिक्षा के अधिकार के अंतर्गत स्कूलों में निशुल्क शिक्षा प्रदान की जा रही है। बच्चों के साथ यदि कोई अपराध करता है तो वह पोक्सो अधिनियम के अंतर्गत दंडनीय अपराध है। दहेज प्रथा को रोकने के संबंध में दहेज प्रतिषेध अधिनियम बनाया गया है। कार्यक्रम के दौरान एक छात्र ने न्यायाधीश से सवाल किया कि होटल पर काम करने वाले और टीवी धारावाहिक में काम करने वाले बच्चों के श्रम में क्या अंतर है? न्यायाधीश ने बताया कि 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को बाल मजदूरों के रूप में काम करने से मना किया जाता है क्योंकि यह मजदूरी करने की नहीं होती।जबकि टीवी धारावाहिक फिल्म में काम करने वाले बच्चे मजदूरी नहीं करते बल्कि अपनी प्रतिभा दिखाते हैं यह उनकी मजदूरी नहीं। बालश्रम में की गई मजदूरी बच्चों को शिक्षा और बचपन से उनको वंचित करती है। जबकि बच्चे द्वारा अभिनय करना टीवी, धारावाहिक या फिल्म में उनका ज्ञान बढ़ाता है और उन्हें परिपक्व कर प्रतिभा को भी निखारता है। एक श्रमिक और एक कलाकार में बहुत अंतर होता है। साक्षरता शिविर में स्कूल के सभी छात्र शिक्षक, तहसील विधिक सेवा प्राधिकरण की ओर से रामेंद्र कोष्ठी, चितरंजन जाटव एवं पैरालेगल वालंटियर फरहानाज़ मौजूद रहे।