सागर | कूलर-एसी का भी बाप है यह पंखा,200 साल पहले अंग्रेज भी लेते थे इसका मजा | sagar tv news |
सागर सहित बुंदेलखंड नौतपा में खूब तप रहा है, भीषण गर्मी से बचने लोग पंखे कूलर ऐसी का इस्तेमाल करते है लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जब 2-4 दशक पहले बिजली गांव-गांव तक नहीं पहुंची थी, इतने संसाधन नहीं होते थे तब लोग क्या करते होंगे, कैसे गर्मी से बचते होंगे, बता दे कि उस समय बिना बिजली के चलने वाले देशी पंखो का लोग इस्तेमाल करते थे जिन्हे हाथ से तैयार किया जाता था, इनका उपयोग कर आसानी से गर्मी से बचा जाता था. बुंदेलखंड में उपयोग होने वाले इन पंखों को बिजना कहा जाता हैं.
गर्मी से राहत पाने के लिए कुशा घास, खजूर पत्ती, कांस घास, तेंदू - पलास के पत्तों से हाथ के पंखे बनाये जाते रहे हैं, गर्मी के दिनों में उन पंखों को पानी में गीला करके हवा करने पर कूलर जैसी ठंडी हवा प्राप्त होती है. इसे प्राकृतिक कूलर भी कह सकते हैं. ऐसे पंखों को एक बार गीला करने पर वह 30 से 35 मिनट तक ठंडी हवा प्रदान करते रहते हैं.
वही दफ्तरों में राजशाही पंखा होते थे जिनमे साहब की टेबिल के ऊपर एक पंखा होता था जिसे ऑफिस के बाहर खड़ा कर्मचारी रस्सी से हिलाता था उससे ठंडी हवा निकलती थी, ब्रिटिश काल में अँग्रेजी अफसरों ने इसके खूब मजे लेते थे,
इसी तरह के 46 प्रकार के पंखे सागर के सत्यम कला एवं संस्कृति संग्रहालय में आज भी रखे है इन्हे दामोदर अग्निहोत्री ने पिछले 30 सालो से संरक्षित करके रखाअलग लग जगहों से संजोया है, दामोदर अग्निहोत्री ने बताया की ब्रिटिश कालीन राजशाही पंखा उन्हें ललितपुर से प्राप्त हुआ था जो आज भी वैसे ही पल भर में मिजाज ठंडा कर देता है,