Sagar - The last memento of Chandrashekhar Azad is kept in this museum.
23 जुलाई को देश के महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का जन्मदिन है। यह एक ऐसे युवा क्रांतिकारी थे, जिन्होंने अपने देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते अपनी जान दे दी। झाबुआ जिले के भावरा गांव जन्मे आजाद का सागर जिले से भी गहरा नाता रहा है. एक तो यह कहा जाता है कि फरारी के दिनों में आजाद खुद बंडा इलाके में मुनीम बनकर लोकरस परिवार की गोदाम पर रहे हैं. हालांकि इसकी पूर्ण रूप से पुष्टि नहीं होती है. दूसरा चंद्रशेखर आजाद की शहादत के बाद उनकी मां जगरानी देवी भी करीब डेढ़ साल तक रहली में क्रांतिकारी सदाशिव राव मलकापुरकर के घर पर रही है.
वहीं अब क्रांतिकारियों की यादों को सहेजने वाले अथक पथ संग्रहालय में चंद्रशेखर आजाद की आखिरी निशानी के रूप में उनकी हाथ घड़ी रखी हुई है. जो करीब 100 साल पुरानी बताई जाती है. जिसे देखकर लोगों को गर्व होता है. आज भी उनकी वीरता, बहादुरी और बलिदान की कहानी को सुनकर रोम रोम में जोश भर उठता है. यह संग्रहालय सागर से करीब 80 किलोमीटर दूर बीना में हैं. जिसे राम शर्मा के द्वारा पिछले 35 सालों से सहेजा जा रहा है. चंद्रशेखर आजाद की हाथ घड़ी के साथ उनकी मां जगरानी देवी की पीतल की श्रृंगार पेटी भी रखी हुई है.यह वही श्रृंगार पेटी हैं. जो उनकी शादी में विदाई के समय मायके से लेकर आई थी.इसमें उनके जेवर रखे हुए थे.
राम शर्मा बताते हैं कि मध्य प्रदेश में एक स्थान बाबई है. जहां महेंद्र तिवारी और उनके परिवार रहता है. यह आजाद के नाते रिश्तेदार बताए जाते है. इन्होंने ही यह हाथ घड़ी और श्रृंगार पेटी संग्रहालय में रखने के लिए सासम्मान भेंट की थी.
चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को हुआ था. 27 फरवरी 1931 को अंग्रेजों से हुई मुठभेड़ में वीरगति को प्राप्त हो गए थे. अंग्रेज़ों से लड़ते-लड़ते जब उनकी पिस्टल में आखिरी गोली बची तो उन्होंने अपनी कनपटी पर रखकर ऐसे चला दिया था. चंद्रशेखर आजाद ऐसे ही क्रांतिकारी थे. जिन्हें ब्रिटिश हुकूमत की फौज कभी जिंदा नहीं पकड़ सकी थी. उनके नाम से अंग्रेजी अफसर कांप जाया करते थे.