MP के इस जिले में लगता है, जहरीले सांपों का मेला, चढ़ावे में चढ़ाये जाते है नाग-नागिन देखिये खबर
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एमपी के बुरहानपुर में ऋषी पंचमी को अडबाल पंचमी भी कहा जाता हैं। बुरहानपुर के उखड्ड गांव में उतावली नदी को पार कर घने जंगलों से होकर भक्त पंहुचते हैं। नाग देवता के देवालय पर यहां चतुर्थी की रात और पंचमी के प्रारंभ होते ही अंधेरों में निकल जाते हैं। लोग पुजा करने, यहां जाने पर दो विशाल नाग देवता की बांबी होती है। जिस पर लोग करते है पुजा और लेते हैं। मन्नत, मन्नत पूर्ण होने पर छोडते हैं। नाग देवता का जोडा चढाते हैं। चांदी का छत्र, हजारों की संख्या में यहां पंहुचते है। देवालय और निभाते हैं ,पंरपरा, चढाते हैं। मैदे की पूरी जो घी में बनी हो, विश्व में एक ही स्थान हैं।
जहां चढता हैं इस प्रकार का प्रसाद, किंतु इस वर्ष उतावली नदी को पार करने के लिए शासन द्वारा कोई भी व्यवस्था नही की गई। जिससे भक्तों को नदी पार करने में दिक्क हो रही हैं। कभी भी उतावली में बाढ की स्थिती निर्मीत हो जाती है। प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं किये हैं। केवल पुलिस और एसडीआरएफ की टीमें लगाई है। दरहसल बुरहानपुर से 7 किमी दूर उतावली नदी के पार उखड गांव में चतुर्थी की रात और पंचमी के प्रारंभ होते ही निकल पडते हैं। लोग यह परंपरा करीब 396 वर्ष पुरानी हैं। जो आज भी उतनी ही अदब के साथ निर्वाह कि जा रही हैं। जैसा की 396 वर्ष पुर्व चलती थी, यहां लोग हाथों में टोकरी में बंद नाग का जोडा लेकर निकल पडते हैं या हाथों में होता हेैं मैदे की पूरी जो कि एक विषेष प्रकार के बांस के खाने बनी हुई होती हैं। उसपर पूरीयां टंगी होती हैं।
यह पुरी मैदे और घी की बनी होती हैं। यहां हजारों भक्त पंहुचते हैं। इस नाग देवता की चिकनी मिट्टी से बनी बांबी की पूजा करने कहा जाता हैं इस बांबी में नाग देवता वर्ष भर निवास करते हैं। और आज के दिन केवल नसीब वालों को ही दर्षन देते हैं। यहां जो सच्चे मन से मन्नत मांगता हैं। उसकी मन्नत भी पुरी होती हैं। अब इस उखड गांव में देवालय तक पंहुचने के लिएंें उतावली नदी को पार करना होता हैं। यहां बच्चें, बूढे औरते सभी उम्र के भक्त आते हैं। और नदी पार कर मंदिर पर पंहुचते हैं, कभी-भी कोई घटना घट सकती हैं। पुलिस और एसडीआरएफ की टीम तो मौजूद है ,किंतु कोई हादसा होने पर किसी की जान बचाने के लिए साधन संसाधन उपलब्ध नही है।