Sagar- छठी पर्व को मनाने चकराघाट पर उमड़ी भीड़, सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत संपन्न
सागर के चकरा घाट पर गुरुवार की शाम छठी पर्व मनाने भक्तों का सैलाब उमड़ा, यहां व्रत करने वाली महिलाओं ने डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा अर्चना की, नहाए खाए से शुरू हुआ व्रत सप्तमी की सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर संपन्न हुआ, इस व्रत में 36 घंटे तक निर्जल रहना पड़ता है, बिहार क्षेत्र का यह बहुत बड़ा पर्व है लेकिन सागर में भी 500 से अधिक परिवार बिहारी हैं लेकिन अब यह हर व्यक्ति की आस्था का केंद्र बन चुका है, चकरा घाट का सौंदर्यकरण का कार्य हो जाने की वजह से पहली बार यहां पर व्यवस्थित तरीके से सूर्य की उपासना की जा सके किसी को कोई परेशानी नहीं हुई
दरअसल शुद्धता, सात्विकता और आस्था की वैदिक युग से जारी एक अद्भुत परपंरा है छठ पर्व, त्रेतायुग में माता सीता और द्वापर युग में द्रौपदी ने छठ का व्रत रखकर कुल की सुख-शांति के लिए षष्ठी देवी और सूर्यदेव की आराधना की थी। यह शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि का पर्व है
भगवान राम ने रावण से युद्ध के पहले आदित्य हृदय स्तोत्र के माध्यम से सूर्य की उपासना की थी। युद्ध के दौरान भगवान् श्रीरामचन्द्रजी सोच में डूबे थे कि कैसे विजय पा सकेंगे। तब महर्षि अगस्त्य ने रामजी को आदित्य हृदय का उपदेश दिया था। उन्होंने सूर्य की उपासना के फल भी बताए थे। विपत्ति में फंसा हुआ, कष्ट में पड़ा हुआ, घने जंगलों में भटकता हुआ और भयों से स्तब्ध व्यक्ति जब आदित्य हृदय स्तोत्र से सूर्य को नमन करता है तो सारे दुःखों से पार पा जाता है।
भविष्य पुराण में भगवान श्रीकृष्ण और सांब का संवाद है। सांब श्रीकृष्ण के पुत्र थे। इस संवाद में श्रीकृष्ण ने सांब को सूर्य देव की महिमा और उसका महत्व बताया है। श्रीकृष्ण के अनुसार सूर्यदेव एकमात्र प्रत्यक्ष देवता हैं यानी सूर्यदेव को रोज सीधे देखा जा सकता है। जो भक्त पूरी श्रद्धा और भक्ति से सूर्य की पूजा करता है, उसकी सभी इच्छाएं सूर्य भगवान पूरी करते हैं। गीता में कृष्ण ने स्वयं को सूर्य से जोड़ा है