क्या थी बुंदेलखंड में जनसंघ की पहचान ! #kissa , #shivapurohit
आज जो किस्सा मैं आपको सुनाने जा रहा हूँ वो बुंदेलखंड की राजनीति के इतिहास की वो कहानी बयान करता है जिसमे जनसंघ को बुंदेलखंड में कैसे पहचान मिली उसे बताने काफी है। भारत की आजादी के बाद कांग्रेस को टक्कर देने के लिए जनसंघ धीरे धीरे खड़ा हो रहा था। ऐसे में बुंदेलखंड में जनसंघ की पहचान अभी कुछ भी नहीं थी और कुछ गिने चुने नेताओ की दम पर जनसंघ आगे बढ़ रही थी। इन्ही में थे जनसघ के बड़े नेता स्व दुलीचंद राठौर -स्व दुलीचंद राठौर से जुड़ा ये किस्सा मुझे सुनाया था - जनसंघ फिर बीजेपी वरिठ नेता स्व कोमलचंद भंडारी ने - स्व दुलीचंद राठौर के बारे में आगे बताये उससे पहले मैं आपको बता दूँ की वो पूर्व मंत्री बीजेपी के कद्दावर नेता हरनाम सिंह राठौर के पिता और बंडा से पूर्व विधायक हरवंश राठौर युवा उद्योगपति कुदीप सिंह राठौर और नागेंद्र सिंह राठौर के दादा है।दरअसल बात भारत की आजादी के शुरुआती दौर की थी जब कांग्रेस सबसे बड़ी सकती थी ऐसे में सोसलिस्ट पार्टी और जनसंघ जैसे दल कांग्रेस को टक्कर तो दे रहे थे लेकिन ये उतने प्रभावी नहीं थे। फिर भी कुछ एक नेताओ की दम पर ये दल मुकाबला करने मैदान में उत्तर रहे थे। ऐसे जनसंघ के बड़े नेता थे स्व दुलीचंद राठौर जो जनसंघ आर्थिक सहित तमाम सारे संसाधन उपलब्ध करवाते थे। यूँ कहे तो वो जनसंघ की बुंदेलखंड एक शक्ति थे। अब आपको किस्सा सुनाता हूँ - बात 50 के दशक के चुनावो की है चुनाव में प्रचार प्रसार के लिए कांग्रेस के पास कार्यकर्ता भी थे और नेता भी लेकिन जनसंघ के पास न बड़ी संख्या में कार्यकर्त्ता थे और जो नेता थे वो भी गिने चुने। उस वक़्त चुनाव प्रचार साइकिल से होता था। जनसघ में नेताओ के पास चार पहिया मोटर कार नहीं थे सिर्फ दुलीचंद राठौर एक ऐसे नेता थे जिनके पास आर्थिक सापनयता थी और मोटर कार भी। स्व कोमलचंद भंडरी बताते है की मोटर कार की हालत उतनी अच्छी नहीं थी जनसंघ के 6 7 नेता उस मोटर में जुगाड़ तुगाड करते बोर फट्टे बिछा कर मुछो पर ताव देकर बैठते और फिर प्रचार करने निकल जाते। मोटर कार खुद दुलीचंद जी राठौर चलाते थे। बस इस बात पर विपक्ष के लोगो ने एक नारा कहना शुरू कर दिया- टूटी मोटर साथ जवान - जनसंघ की यही पहचान -