टीकमगढ़ के सरकारी अस्पताल में कोरोना मरीजों का मनोबल बढ़ा रही नर्स की कहानी
आज नर्स डे है। कोरोना पीड़ितों के इलाज में जुटी टीकमगढ़ सरकारी अस्पताल की 39 साल की नर्स प्रफुल्लित पीटर एक फेफड़े के दम पर मरीजों की जान बचा रही हैं। बचपन से एक फेफड़े के सहारे जी रहीं प्रफुल्लित इसे दुरुस्त रखने के लिए रोज प्राणायाम और गुब्बारा फुलाने जैसी कसरत करती हैं। वे अक्सर कहती हैं- ‘मैं एक फेफड़े से कोरोना की जंग जीत सकती हूं तो आप क्यों नहीं?’ पेश है उनकी जुबानी...
रोज आधा घंटा प्राणायाम और गुब्बारा फुलाकर फेफड़े दुरुस्त रखती हूं
पिछले एक साल से मैं 12 घंटे पीपीई सूट पहनकर कोविड वार्ड में ड्यूटी कर रही हूं। पहले दिन ड्यूटी पर पहुंची, तो थोड़ी घबराहट हुई लेकिन पूरी तरह आश्वस्त थी, क्योंकि हमें इस वायरस के बारे में काफी कुछ बताया जा चुका था। जब पहला मरीज अस्पताल आया तो थोड़ा डर भी लगा, लेकिन वह स्टेबल हुआ तो थोड़ी हिम्मत मिली।
पीपीई किट और डबल मास्क लगाकर जब मैं मरीजों के बीच जाती हूं तो वे अक्सर पूछते हैं कि हम कैसे ठीक होंगे? आप अपने आप को इतना सुरक्षित कैसे रखती हैं? मैं यही कहती हूं कि आपको सिर्फ संक्रमण है, हौसला रखो। जल्द ठीक होकर वापस लौटोगे। फिर उन्हें बताती हूं कि मैं खुद एक फेफड़े के सहारे जी रही हूं।
इस बात का पता मुझे भी 2014-15 में तब लगा, जब तबीयत खराब हुई और एक्स-रे करवाना पड़ा। मेरा बायां फेफड़ा नदारद था। तब चाचा ने बताया कि बचपन में चोट की वजह से डॉक्टरों ने उसे निकाल दिया था। मैं आज भी सुबह 5.30 बजे उठकर रोज आधा घंटा प्राणायाम और गुब्बारा फुलाने की एक्सरसाइज मेरी दिनचर्या में है।
इतना ही नहीं, दो मरीज महेंद्र विश्वकर्मा और संजीव जैन हाई रिस्क पर आए थे और काफी घबराए हुए थे। मैंने उन्हें भी धैर्य रखने की बात कही। कहा- ईश्वर आपके साथ है। दोनों 8 दिन में ही स्वस्थ हो गए। मेरे वार्ड में 30 बेड हैं। मरीजों को समय पर दवा और देखरेख मेरी पहली प्राथमिकता है। खुद को और परिवार को संक्रमण से बचाए रखने की जिम्मेदारी अलग। पति राजेंद्र के अलावा बेटे आस्टिन और अश्विन बीच-बीच में फोन कर यह जानने की कोशिश में रहते हैं कि मैं ठीक तो हूं ना। मैं उन्हें समझाती हूं कि यह मेरी ड्यूटी है मुझे कुछ नहीं होगा।
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