जालियावाला बाग़ हत्याकांड का बदला लेने वाले उधमसिंह की पूरी कहानी

 

इस हत्याकांड को उचित ठहराने वाले गवर्नर ओ ड्वायर को उड़ा दिया था गोली से

 

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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में जलियांवाला बाग हत्याकांड एक भयानक अध्याय है

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में जलियांवाला बाग हत्याकांड एक भयानक अध्याय है। 13 अप्रैल को अंजाम दिए गए इस हत्याकांड के गुनाहगार समय पंजाब के गर्वनर जनरल रहे माइकल ओ ड्वायर को आज ही के दिन यानी 13 मार्च, 1934 को ऊधम सिंह ने गोली मारी थी और जलियांवाला बाग में गिरे खून का बदला लिया था। इस मौके पर आइये आज ऊधम सिंह और उनके जीवन के बारे में जानते हैं...

 

जन्म -

उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गाँव में काम्बोज परिवार में हुआ था। सन 1901 में उधमसिंह की माता और 1907 में उनके पिता का निधन हो गया। इस घटना के चलते उन्हें अपने बड़े भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी। उधमसिंह का बचपन का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्तासिंह था जिन्हें अनाथालय में उधमसिंह और साधुसिंह के रूप में नए नाम मिले। ऊधम सिंह सभी धर्मों का एक समान आदर करते थे इसलिए अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद आजाद सिंह कर लिया जो भारत के तीन प्रमुख धर्मों हिंदू, मुस्लिम और सिख का प्रतीक है।
अनाथालय में उधमसिंह की जिन्दगी चल ही रही थी कि 1917 में उनके बड़े भाई का भी देहांत हो गया। वह पूरी तरह अनाथ हो गए। 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए। उधमसिंह अनाथ हो गए थे, लेकिन इसके बावजूद वह विचलित नहीं हुए और देश की आजादी तथा डायर को मारने की अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए लगातार काम करते रहे।

 

जनरल गवर्नर रहे माइकल ओ ड्वायर से लिया बदला -

 

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में 13 अप्रैल 1919 एक खूनी दिन के तौर पर दर्ज है। इसी दिन अंग्रेजों ने अमृतसर के जलियांवाला बाग में सभा कर रहे निहत्थे भारतीयों पर अंधाधुंध गोलियां चलाईं और सैकड़ों बेगुनाह लोगों को मौत के घाट उतार दिया। मरने वालों में मांओं के सीने से चिपके दुधमुंहे बच्चे, बूढ़े और देश के लिए सर्वस्व लुटाए तैयार युवा सभी थे। इस घटना ने ऊधम सिंह को हिलाकर रख दिया और इसके बाद उन्होंने अंग्रेजों से इसका बदला लेने की ठान ली। इसके लिए उन्होंने माइकल डायर को जिम्मेदार माना।

 

ऊधम सिंह ने कसम खाई कि वह डायर को मारकर इस घटना का बदला लेंगे। लेकिन डायर बीमारी के चलते इस दुनिया से चल बसा और उसने जलियाबाग पर किये हमले को गलत भी माना लेकिन पंजाब के गर्वनर जनरल रहे माइकल ओ ड्वायर ने इस घटना को उचित ठहराया था इसलिए उधम सिंह ने उसे उसी के देश में जाकर मारा था उधम सिंह ने अपने मिशन को अंजाम देने के लिए अलग अलग नामों से अफ्रीका, नैरोबी, ब्राजील और अमेरिका की यात्राएं कीं। सन् 1934 में ऊधमसिंह लंदन गए और वहाँ 9 एल्डर स्ट्रीट कमर्शल रोड पर रहने लगे। वहां उन्होंने यात्रा के उद्देश्य से एक कार खरीदी और अपना मिशन पूरा करने के लिए छह गोलियों वाली एक रिवॉल्वर भी खरीद ली। माइकल ओ ड्वायर को ठिकाने लगाने के लिए वह सही समय का इंतजार करने लगे।आखिरकार उनको 1940 में मौका मिल ही गया। 13 मार्च 1940 को रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के कॉक्सटन हॉल में बैठक थी जहां जनरल गवर्नर ओ ड्वायर भी वक्ताओं में से एक था।

 

ऊधम सिंह उस दिन समय से पहले ही बैठक स्थल पर पहुंच गए। उन्होंने अपनी रिवॉल्वर एक मोटी सी किताब में छिपा ली। उन्होंने किताब के पृष्ठों को रिवॉल्वर के आकार में इस तरह से काट लिया, जिसमें माइकल ओ ड्वायर की जान लेने वाले हथियार को आसानी से छिपाया जा सके। बैठक के बाद दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए ऊधम सिंह ने गवर्नर ओ ड्वायर पर गोलियां चला दीं। दो गोलियां ओ ड्वायर को लगीं, जिससे उसकी तुरंत मौत हो गई। गोलीबारी में माइकल ओ ड्वायर के दो अन्य साथी भी घायल हो गए। ऊधम सिंह ने वहां से भागने की कोशिश नहीं की और स्वयं को गिरफ्तार करा दिया। उन पर मुकदमा चला। अदालत में जब उनसे सवाल किया गया कि वह ओ ड्वायर के साथियों को भी मार सकते थे,किन्तु उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया। इस पर ऊधम सिंह ने उत्तर दिया कि वहां पर कई महिलाएं भी थीं और भारतीय संस्कृति में महिलाओं पर हमला करना पाप है। अपने बयान में ऊधमसिंह ने कहा मैंने गवर्नर ओ ड्वायर को मारा क्योंकि वह इसी के लायक था। मैंने ब्रिटिश राज्य में अपने देशवासियों की दुर्दशा देखी है। मेरा कर्तव्य था कि मैं देश के लिए कुछ करूं। मुझे मरने का डर नहीं है। देश के लिए कुछ करके जवानी में मरना चाहिए।

 

गवर्नर ओ ड्वायर की हत्या का दोषी ऊधम सिंह को ठहराया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई। 31 जुलाई 1974 को ब्रिटेन ने उनके अवशेष भारत को सौंप दिए थे। ऊधम सिंह की अस्थियां सम्मान सहित भारत लाई गईं। उनके गांव में उनकी समाधि बनी हुई है।

 


By - shubhi jain
13-Apr-2019

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