बैतूल में ग्लैंडर्स बीमारी के कारण एक घोड़े को मारना पड़ा। डॉक्टरों ने प्रशासन की मौजूदगी में घोड़े को मर्फी किलिंग इंजेक्शन लगाया। इसके 10 मिनट बाद ही घोड़ा मौत की नींद सो गया। घोड़े के शव को 3 मीटर गहरी कब्र में दफनाया गया है। 7 डॉक्टरों की टीम ने इस पूरी प्रक्रिया को अंजाम दिया।बैतूल के चिचोली विकासखंड पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. केसी तंवर का कहना है कि दिलीप राठौर ने डेढ़ महीने पहले पशु अस्पताल में बीमार घोड़े का इलाज करवाया था। घोड़े का नाम डांसर था। पशु चिकित्सक ने लक्षणों के आधार पर घोड़े के ब्लड सैंपल लेकर रिपोर्ट भेजी थी। इसके बाद दो बार घोड़े के ब्लड के सैंपल लेकर हिसार स्थित प्रयोगशाला में भेजे गए थे। इसमें घोड़े में ग्लैंडर्स की पुष्टि हुई थी। इसके बाद कलेक्टर के आदेश के बाद गुरुवार घोड़े को किलिंग प्रक्रिया के तहत 4 दर्द रहित इंजेक्शन दिए गए। इसके 10 मिनट बाद डांसर की मौत हो गई।चिचोली के रहने वाले दिलीप राठौर ने एक साल पहले डांसर नाम के घोड़े को एक लाख रुपए में खरीदा था। इसे वे शादियों के ऑर्डर पर ले जाते थे। जैसे ही उन्हें उसकी बीमारी का पता चला वे परेशान हो गए। चूंकि यह बीमारी जानवरों और इंसानों के लिए खतरनाक है इसलिए उन्होंने दिल पर पत्थर रख यह निर्णय किया।
बताया जा रहा है कि ग्लैंडर्स जेनेटिक बीमारी है। यह बीमारी ज्यादातर घोड़े गधों और खच्चरों को होती है। बीमारी से पीड़ित पशु को मारना ही पड़ता है। अगर कोई पशुपालक बीमारी से ग्रसित पशु के संपर्क में आता है तो ये मनुष्यों में भी फैल जाती है। लाइलाज होने के कारण बीमारी से पीड़ित पशु को यूथेनेशिया (इच्छा मृत्यु) दिया जाता है। इसके बाद पशु गहरी नींद में चला जाता है। करीब 10 मिनट में नींद के दौरान ही उसकी दर्द रहित मौत हो जाती है।
पशु चिकित्सक डॉ. केसी तंवर का कहना है कि कि ग्लैडर्स एंड फायसी एक्ट के 1899/13 एक्ट के तहत पशु पालक दिलीप राठौर को 25 हजार रुपए का मुआवजा मिलेगा।