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वैसे तो सागर के इतिहास में ढेरो ऐसे लोग है जिनका जीवन एक मिसाल रहा है लेकिन शायद ही हम जानते है की आजादी के बाद सबसे पहले छात्रों के हीरो कौन थे। नमस्कार मैं हूँ शिवा पुरोहित और आप है सागर टीव्ही न्यूज़ के साथ।आज आपको सुनाऊंगा आजादी के बाद सागर के पहले युवा तुर्क की कहानी जिसकी शेर जैसी दहाड़ से हजारो छात्रों का हुजूम दौड़ पड़ता था। डॉ हरिसिंह गौर के उस सपूत के बारे में आपको बताऊगा हर युवा जिसका दीवाना था। जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ सागर के जाने माने अधिवक्ता चतृर्भुज सिंह राजपूत की।चतृर्भुज सिंह राजपूत के जीवन से जुड़े कुछ किस्से मुझे सुनाए थे देश के जाने माने वक्त लेखक साहित्यकार प्रो सुरेश आचार्य, स्वंत्रता संग्राम सेनानी शिवशकर केसरी और सागर के वरिष्ठ नागरिक श्याम सिपोल्या ने - उनके जीवन से जुड़े कई किस्सों में से एक उन्होंने सागर के इतिहास की चर्चा करते हुए बताया।सागर में डॉ हरिसिंह गौर के देहांत के बाद उनकी स्मृति में कोई प्रतिमा या स्मारक नहीं था ,सागर नगर पालिका ने शहर की तीन बत्ती पर डॉ गौर की मूर्ति लगाए जाने का प्रस्ताव पास किया। डॉ गौर की मूर्ति लगाने का फैसला तो ले लिया गया लेकिन मूर्ति के लिए फण्ड की कमी थी। लेकिन सागर वासियो के इरादों में जरा भी कमी नहीं थी। इन्ही मजबूत इरादे वाले लोगो में थे सागर का एक युवा छात्र नेता - चतृर्भुज सिंह राजपूत बात 60 के दशक की है चतुर्भुज सिंह राजपूत छात्र संघ के अध्यक्ष थे और शहर के स्टूडेंट हीरो भी ये स्टूडेंट हीरो क्यों थे इसके पीछे की कई वजह में एक तह डॉ गौर की तीनबत्ती पर प्रतिमा स्थापित करने में उनकी भूमिका के चलते। - चतृर्भुज सिंह राजपूत ने एकतरह से छात्रों के साथ मिलकर डॉ गौर की प्रतिमा लगवाने का बीड़ा अपने ऊपर उठाया और छात्रों को एक जुट किया। इन छात्रों में उस वक़्त के छात्र सुरेश आचार्य भी थे जिनमे काफी उमंग थी । ये सभी छात्र तीन बत्ती कटरा चकराघाट जैसे स्थानो पर हाथो में बूट पोलिस लेकर दिन भर बैठते साथ में एक डिब्बा रखते जिसमे जो भी कमाते वो पैसा इकट्ठा करते और मूर्ति लगवाने के लिए दान कर देते। इसके अलावा शहर में घूम घूम कर चंदा इकटा करते। ये सभी बाते मुझे खुद चतृर्भुज सिंह राजपूत जी ने सुनाई उन्होंने बताया की साल 1960 से 62 तक सभी छात्रों ने मूर्ति लगवाने के लिए चंदा इकट्ठा किया इस दौरान उन्हें नगर पालिका चुनाव में रामपुरा वार्ड से चुनाव लड़ा और चुनाव जीत कर पार्षद बने इसके बाद सभी शहरवासियों की भावना के अनुरूप सभी की मेहनत रंग लाई और आज इसी का नतीजा है की हम तीनबत्ती डॉ गौर की जो प्रतिमा देख पा रहे है।साल 1967 में डॉ गौर की प्रतिमा तीन बत्ती पर स्तापित हुई लेकिन ये सब इतना आसान नहीं था। इसके लिए कई लोगो जेल जाना पड़ा तो कई तरह की मेहनत मशक्त भी करनी पड़ी ये कहानी भी आपको जल्द ही दूसरे वीडियो सुनाऊंगा जो अपने आप में काफी दिलचस्प है। फ़िलहाल इस आज आपको सुनाई सागर के एक छात्र हीरो की कहानी जो आज भी एक लिविंग लीजेंड है। और हमेशा सागर की सागर के लोगो की फ़िक्र करते रहते है।


By - Shiva Purohit (Sagar,MP)
24-Jan-2021

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