IAS ने कलेक्टर शब्द के रूतबे से खुद को किया दूर। गाड़ी के आगे से नेमप्लेट हटाई। खुद बताई वजह
कलेक्टर नाम ही काफी होता है। सरकारी महकमे से लेकर आम जनता में शायद ही ऐसा कोई आदमी होगा जो कलेक्टर शब्द की महिमा न समझता हो। सरकारी अधिकारी कलेक्टर बनने के लिए क्या-क्या जतन नहीं करते। अब इसी शब्द की निशानी को आईएएस विकास मिश्रा ने अपने सरकारी वाहन से हटा दिया। इस समय वे डिडौंरी में कलेक्टर हैं। एक दिन पहले तक उनके सरकारी वाहन पर कलेक्टर शब्द शोभायमान था। अचानक उन्होंने इस नेमप्लेट को बोझ समझकर अलग कर दिया। जब असंगठित मजदूरों के स्वास्थ्य परीक्षण कार्यक्रम में पहुंचे तो उनकी गाड़ी पर आगे लोकसेवक लिखा हुआ था। यह बदलाव देख लोग चैंक गए। बाद में उन्होंने खुद ही इसकी वजह बताई। बोले संविधान में कहीं भी कलेक्टर नाम का उल्लेख नहीं है। उसमें लोकसेवक लिखा हुआ है। इसलिए संविधान के अनुसार ही लोकसेवक लिखा है। उनका यह नवाचार प्रदेश में चर्चा और प्रशंसा की वजह बना हुआ है। यह पहला मौका होगा
जब किसी ने कलेक्टर शब्द को अपनी पहचान से अलग करने की हिम्मत दिखाई है। उन्होंने मीडिया को बताया कि यह बात कई दिन से खल रही थी। इसलिए लोकसेवक ही लिख लिया। डिंडौरी आदिवासी बाहुल्य इलाका है। उनके बीच यह शब्द भारी लगता है। कानून में कलेक्टर शब्द का इस्तेमाल रिवेन्यू टैक्स कलेक्शन के लिए उपयोग किया जाता है। यहां टैक्स जैसी स्थिति भी नहीं है। लोकसेवक शब्द ज्यादा अच्छा लगता है। आपको बता दें आईएएस विकास मिश्रा नवाचारों के लिए जाने जाते हैं। मिश्रा 2013 बैच के आईएएस अफसर हैं। 9 नवंबर 2023 को उन्होंने डिंडौरी की कमान संभाली थी। वे सुबह 5 बजे फील्ड में निकल जाते हैं। दौरे पर कहां जाना है यह पहले से किसी को पता नहीं रहता उनके वाहन चालक को भी नहीं। इसके पहले वे तब सुर्खियों में आए थे जब परेशान आदिवासी महिलाओं के हाथ पर उन्होंने अपना मोबाइल नंबर लिखकर दिया था। बुजुर्ग आदिवासी महिलाओं के पैर झूने से भी उन्हें गुरेज नहीं रहता।
इसके अलावा 27 नंवबर 2023 सरकारी स्कूल के दौरे पर पहुंचे तो रूद्रप्रताप झारिया नामक कक्षा नवमी के छात्र ने उनसे कलेक्टर बनने की इच्छा जाहिर की। इस पर उन्होंने छात्र को ले जाकर कलेक्टर की कुर्सी पर बैठा दिया था और उसे कार्यप्रणाली समझाई थी। आज जहां कोई अधिकारी जनता को गालियां बक पद का रूतबा झाड़ रहा है तो कोई अपशब्द कह रहा, कोई किसानों को चूजा समझ रहा तो कोई कलेक्टर बनकर जनता को औकातहीन बता रहा है। बिना पर्ची दिए कार्यालय में अधिकारी के दर्शन दुर्लभ होते हैं। ऐसे में एक अधिकारी का खुद को जनता का सेवक कहना किसी चमत्कार से कम नहीं है। लोकसेवक यानि जनता का सेवक। अगर बाकी अधिकारी भी जनसेवक बन जाएं तो रामराज्य आने में देर नहीं लगेगी। लोकसेवक विकास मिश्रा ने जो शुरूआत की है वह कितनी सफल होती है यह तो आने वाला समय ही बताएगा। फिलहाल उनकी पहल ने जनता का दिल जरूर जीत लिया है।