दमोह मिशन अस्पताल मामला, देर से जागा प्रशासन, डेढ़ महीने बाद कैथ लैब सील, 7 लोगों की जा-न जाने के बाद कार्रवाई
एमपी के दमोह के मिशन अस्पताल में कथित फर्जी डॉक्टर की लापरवाही से हुई सात मरीजों की जान जाने के बाद अब जिला प्रशासन हरकत में आया है। करीब डेढ़ महीने बाद प्रशासन ने गुरुवार शाम को अस्पताल की कैथ लैब को सील कर दिया, हालांकि पैथोलॉजी में तकनीशियन नहीं होने के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई, जिससे सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह महज दिखावे की कार्रवाई है? जानकारी के मुताबिक, जिला प्रशासन की टीम — जिसमें नायब तहसीलदार, जिला अस्पताल के डॉ. प्रहलाद पटेल, डॉ. विक्रांत चौहान, डॉ. राजेश नामदेव, डॉ. प्रशांत सोनी और दीपक जैन शामिल थे — मिशन अस्पताल पहुंची और कैथ लैब तथा पैथोलॉजी की जांच की। जांच के बाद कैथ लैब को सील कर दिया गया, लेकिन पैथोलॉजी को लेकर किसी भी तरह की सख्ती देखने को नहीं मिली।
मामले की जड़ में है नरेंद्र विक्रमादित्य यादव, जो कथित रूप से खुद को लंदन के डॉक्टर एन. जॉन केम बताकर अस्पताल में सेवाएं दे रहा था। आरोप है कि उसने हृदय से संबंधित 15 मरीजों का गलत इलाज किया, जिनमें से 7 की जान चली गई थी। जब यह मामला गंभीर रूप से सुर्खियों में आया, तब जाकर प्रशासन की नींद खुली। डॉक्टर यादव बाद में फरार हो गया, लेकिन कुछ दिन पहले प्रयागराज से पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। चौंकाने वाली बात यह है कि 21 फरवरी को ही दमोह की सामाजिक कार्यकर्ता कृष्णा पटेल ने कलेक्टर को लिखित शिकायत दी थी, जिसमें डॉक्टर की डिग्रियों पर सवाल उठाए गए थे। हालांकि प्रशासन ने तब कोई तत्काल कार्रवाई नहीं की। इस पूरे मामले में तेजी तब आई जब एडवोकेट दीपक तिवारी ने इसे राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के सदस्य प्रियंक कानूनगो के संज्ञान में लाया। प्रियंक ने सोशल मीडिया पर इस मामले को उजागर किया, तब जाकर प्रशासन पर दबाव बढ़ा।
इस पूरे घटनाक्रम ने जिला प्रशासन की लापरवाही और सुस्ती को उजागर कर दिया है। सवाल उठ रहे हैं कि आखिर क्यों सात जानें जाने के बाद प्रशासन हरकत में आया? अगर समय पर कार्रवाई की जाती तो शायद ये मौतें टाली जा सकती थीं। दमोह का मिशन अस्पताल मामला एक बड़ी स्वास्थ्य प्रशासनिक विफलता को दर्शाता है। सवाल सिर्फ फर्जी डॉक्टर का नहीं, बल्कि उस व्यवस्था का है जो इतने बड़े झोल को महीनों तक अनदेखा करती रही। अब जबकि कार्रवाई शुरू हुई है, देखना होगा कि यह सिर्फ लीपापोती बनकर रह जाती है या दोषियों पर सख्त कार्रवाई होती है।