खजुराहो-शास्त्रीय नृत्य का अनोखा रिकार्ड, कत्थक कलाकारों ने लूट ली वर्ल्ड लेवल की महफिल
मप्र की शान खजुराहो में इस समय 50 वें खजुराहो नृत्य समारोह का जादू चल रहा है। यहां एक विशेष कत्थक नृत्य महाकुंभ आयोजित किया गया। मप्र के 1484 कलाकारों ने ऐसा मनमोहक शास्त्रीय नृत्य पेश किया जो गिनीज वर्ल्ड बुक रिकार्ड में दर्ज हो गया। विभिन्न वाद्ययंत्रों, कलाकारों की साधना और भारतीय पारंपरिक पोषाक के साथ जब घुंघरूओं ने राग बसंत छेड़ा तो ऐसा लगा मानों वसुंधरा पुलकित हो उठी हो। पंद्रह मिनट तक चले शास्त्रीय नृत्य को देखने वाले दर्शकों की पलकों ने झपकने से मानो इंकार कर दिया। सभी बस एकटक देख रहे थे और उनके कानों में बस राग बसंत की आवाज रस घोल रही थी। विशाल प्रांगण में मौजूद संगीत प्रेमी मूर्तिवत होकर नृत्य पर निगाहें जमाए रहे। उनकी सदियों की संगीत लालसा की प्यास जैसे बुझ गई हो।
दूर—दूर तक सफेद और भगवा रंग पहने कलाकारों ने एक अनुपम छटा बिखेर दी। खास बात यह रही कि यह कलाकार मध्यप्रदेश के कोने-कोने से आए थे। एक माह से सभी ज्यादा समय से सभी कलाकार आॅनलाइन क्लास लेकर शास्त्रीय संगीत की बारिकियां सीख रहे थे। जब खजुराहो की धरती पर इन कलाकारों के पैरों के घुंघरूओं ने खनकना शुरू किया तो लोग दांतों तले अंगुलियां दबाने मजबूर हो गए। ऐसा लगा मानों संगीत प्रेमियों की सदियों की प्यास खजुराहो फेस्टिवल में आकर बुझ गई हो। कलाकार भी यहां आकर खुशी से उछल पड़े। ऐसा लग रहा था कि भारतीय संस्कृति मानव रूप धारण कर राग बसंत का आनंद लेने चहक रही हो। मप्र के मुख्यमंत्री मोहन यादव का मन भी कलाकारों ने मोह लिया। उन्होंने जमकर कलाकारों की सराहना की।
गदृगद सीएम मोहन यादव खजुराहो के लिए घोषणाओं का पिटारा खोलने से खुद को नहीं रोक सके। उन्होंने खजुराहो में गुरूकुल बनाने की घोषणा की। इसमें सीखने की ललक रखने वालों को सभी प्रकार की गायन, वादन, शिल्प सभी तरह की कलाओं में दक्ष किया जाएगा। खजुराहो को बड़ा ट्यूरिज्म प्लेस बताते हुए सीएम ने इसे भारतीय संस्कृति को समझने शिल्पग्राम बनाने की बात कही। इसके अलावा आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज, ऐलोपैथिक हॉस्पीटल और खजुराहो को नगर पालिका बनाने की घोषणा की। जाते-जाते खजुराहो का हर प्रकार से विकास का वादा कर गए। चंदेल कालीन विश्व धरोहर के लिए प्रसिद्ध खजुराहो अब आधुनिक उपलब्धियों का केंद्र भी बन रहा है। इस शास्त्रीय कत्थक वर्ल्ड रिकार्ड ने खजुराहो की संस्कृति को एक बार फिर नई पहचान की कतार में खड़ा कर दिया है।